Navratri Puja – क्या आप जानते हैं नवरात्री पर्व का महत्व ?
by admin · Published · Updated
हिन्दू धर्मं में नवरात्रों का विशेष महत्व होता है। हर वर्ष 6 माह के अंतराल में दो बार नवरात्रि का पर्व आता है।शारदीय नवरात्र एवं चैत्रनवरात्र। शारदीय नवरात्र अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ होते हैं. नवरात्र इस वर्ष 26 सितम्बर,2022 दिन सोमवार से आरम्भ हो रहे है।नवरात्र(Navratri) के यह 9 दिन बहुत ही शुभ माने जाते हैं। इन दिनों में माता दुर्गा की आराधना की जाती है। प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के नौ रूपों(navratri 9 devi) की विधि–विधान से पूजा अर्चना की जाती है। इन नवरात्रों में लोग अपने घरो में अखंड ज्योत प्रज्वलित करते हैं। माता के नवरात्रो में कलश स्थापना(ghatasthapana) और ज्यों का विशेष महत्तव है। पेहले नवरात्रे को लोग अपने घर में कलश स्थापना करके ज्यों बीजते हैं। यह एक प्राचीन परम्परा है और माना जाता है कि माँ दुर्गा की पूजा इसके बीना अधूरी है।
आखिर क्यों बोये जाते हैं ज्यों ?
माना जाता है की जौं ब्रह्मा जी का प्रतीक है। ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि की रचना करने के उपरांत धरती पर सबसे पहली जौं की फसल उत्पन्न हुई थी। इसलिए पहले नवरात्र को कलश में जौं रखे जाते हैं एवं जौं बोये जाते हैं। सृष्टि की पहली फसल होने के कारण प्रत्येक पूजा अर्चना में देवी –देवताओं को जौं अर्पित किये जाते हैं।
नवरात्र में बोये गए जौं क्या संकेत देते हैं ?
जौं बोये जाने के दो-तीन दिन में ही अंकुरित होना शुरू हो जाते हैं और माना जाता है की यदि ऐसा न हो तो उस घर के लोगों के लिए यह शुभ संकेत नहीं माना जाता है। कहा जाता है की जौं का अंकुरित न होना हमे बताता है की हमे आने वाले समय में खूब मेहनत करने के उपरांत ही मन वांछित फल की प्राप्ति होगी।
Navratri Puja-जौं के रंग का महत्व
आपके द्वारा बोये गए जौं यदि हरे या सफ़ेद रंग का उगते हैं तो यह एक शुभ संकेत माना जाता है, आने वाले समय में आपकी मेहनत का फल आपको अवश्य मिलेगा और आपकी पूजा से माता रानी प्रसन्न हुई हैं। परन्तु यदि जौं का रंग निचे से आधा पीला और ऊपर से आधा हरा है तो आपका आने वाला समय आधा अच्छा एवं आधा दुःखमयी हो सकता हे।
नवरात्रों में निमिन्लिखित नौ देवियों की पूजा की जाती है |
पहला नवरात्र (26 सितम्बर 2022) : माँ शैलपुत्री
माँ दुर्गा के प्रथम रूप शैलपुत्री(Shailputri mata) है। इनका जन्म पर्वतराज हिमालय के यहाँ हुआ था। इनकी पूजा अर्चना करने से भक्तो को धन -धान्य,ऐश्वर्या ,आरोग्य तथा मोक्ष की पूर्ति होती है।
द्वितीय नवरात्र (27 सितम्बर 2022) : माँ ब्रह्मचारिणी
माँ दुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी(Brahmacharini mata) है। इनकी पूजा करने से भक्तो में त्याग ,तप ,वैराग्य ,सदाचार और संयम की भावना जागृत होती है।
तृत्य नवरात्र (28 सितम्बर 2022) : माँ चंद्रघंटा
माँ दुर्गा का तीसरा रूप चंद्रघंटा(Chandraghanta mata) है। इनकी आराधना करने से भक्तो में वीरता के गुणों में वृद्धि होती है और पापों से मुक्ति मिलती है।
चतुर्थ नवरात्र (29 सितम्बर 2022): माँ कुष्मांडा
माँ दुर्गा का चौथा रूप कुष्मांडा(Kushmanda mata) है। इनकी उपासना करने से भक्तो के रोग -शोक दूर होते हैं ,रिद्धि -सिद्धि की प्राप्ति तथा आयु -यश में वृद्धि होती है।
पंचमी नवरात्र (30 सितम्बर 2022): मां स्कंदमाता
माँ दुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता(Skandamata) है। माता की उपासना करने से समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है और इन्हे मोक्ष के द्वार खोने वालीमाता भी कहा जाता है।
षष्ठी नवरात्र (01 अक्टूबर 2022): मां कात्यायनी
माँ दुर्गा का छटा रूप कात्यायनी(Katyayani mata) है। इनकी पूजा करने से अद्भुत शक्ति का संचार होता है। माता का ध्यान विशेषतः गोधूली बेला में किया जाता है ।
सप्तमी नवरात्र (02 अक्टूबर 2022): मां कालरात्रि
माँ दुर्गा का सातवां रूप कालरात्रि(Kalratri mata) है। इस दिन का काली की पूजा होती है। इनकी पजा करने से दुश्मनो का नाश होता है और पापों से मुक्ति मिलती है।
अष्टमी नवरात्र (03 अक्टूबर 2022): मां महागौरी
माँ दुर्गा का आठवां रूप महागौरी(Mahagauri mata) है। इनकी पूजा करने से सुख में वृद्धि होती है और शत्रु शमन(शांत) होता है।
नवमी नवरात्र (04 अक्टूबर 2022) : मां सिद्धिदात्री
माँ दुर्गा का अंतिम एवं नौंवा रूप सिद्धिदात्री(Sudhidatri mata) है। इनकी आराधना करने से वक्-सीधी ,भावना-सीधी ,ईशित्व,महिमा ,परकाया प्रवेश एवं समस्त निधियों की प्राप्ति होती है।
दशमी (5 अक्टूबर 2022):
मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन
Navratri visarjan विसर्जन करने से अपने हाथ की हथेली में चावल ,फूल एवं रोली को अपने कलाई में बांधकर माता दुर्गा की प्रतिमा की पूजा निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए करें –
रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे।
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।।
महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।
इसके बाद जो सुहाग सामग्री अपने कलश स्थापना के समय चढ़ाई थी उसको परिवार की स्त्रियों में वितरित करें और जो अपने ज्यों बोये थे उनमे से कुछ ज्यों उस स्थान पर रखें जहँ’ आप अपना धन रखते हैं। अन्तः माता की प्रतिमा एवं जिस पात्र में अपने ज्यों बोये थे उनको श्रद्धापूर्वक अपने आसपास किस नदी या समुद्र में विसर्जित करें। विसर्जन करने के बाद एक नारियल ,माता की चौंकी का कपडा एवं दक्षिणा पंडित जी या मंदिर में दान करें।
Nice read
Jai Mata Di
Jai mata di
Very useful content